नवजात शिशु की देखभाल- पूरी जानकारी ! Navjat Shishu ki Dekhbhal

 इस लेख में  "नवजात शिशु की मालिश, नवजात शिशु के रोग, नवजात शिशु का आहार/ देखभाल, नवजात शिशु में कितनी हड्डियाँ होती है" बताएंगे।

नीचे दी गई वीडियो को ध्यान से देखें क्योंकि ये महत्त्वपूर्ण टिप्स है |

वीडियो पूरा देखें (सब कुछ अंत तक देखें) Click Below Video- 




 मालिश कैसे करे-
जिस तरह से खाना पीना शिशु के लिए अति आवश्यक है , उसी तरह से हड्डियों के विकास और मजबूती के लिए मालिश बहुत ही महत्वपूर्ण है।  बच्चे की मालिश सरसों  के तेल या जैतून के तेल से करनी चाहिए।  कमर,हाथ और टांगो  की मालिश ऊपर से नीचे  की और करनी चाहिए। मालिश से हड्डियों को पोषण मिलेगा और शिशु के अंगो  का विकास सुदृढ़ता से होगा। नवजात शिशु में 300 हड्डियाँ होती है।

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नवजात शिशु -एक चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी
जब एक नवजात शिशु का घर में आगमन होता है तो आपकी जिम्मेदारिया बढ़ जाती है और यह ज़िम्मेदारी बहुत ही चुनौती पूर्ण होती है। नवजात शिशु बहुत ही छोटा और नाजुक होता है, वह रोकर ही अपनी हर बात को व्यक्त करता है। अक्सर  बच्चा  रोता है और दूध की मांग करता है।  परन्तु कई बार बच्चा  पेट भरा होने पर भी रोता रहता है। चुप  करवाने पर भी चुप नही होता तो हम असमंजस में पड़  जाते है की क्या हो रहा है, ऐसा क्या किया जाये की बच्चा चुप हो जाये।

आज के इस लेख में हम आपको उन पहलुओ से वाकिफ करवाएंगे जिस कारण बच्चे  को परेशानी हो सकती है और वो रोने लगता है और किस तरह से उनकी समस्या को दूर करके उन्हें शांत रखा जा सकता है।



नवजात शिशु को कैसे गोद में उठाएं-
आपने नवजात शिशुओं के आसपास अधिक समय कभी व्यतीत नहीं किया है, इसलिए शुरुआत में नवजात   शिशु को उठाने में डर लगता है कि जाने अनजाने हम उसको नुकसान न पहुंचा दे।

 यहाँ कुछ बुनियादी बातों का विवरण दिया गया है -

- नवजात  शिशु को लेने से पहले अपने हाथो को भली भांति धो ले। नवजात शिशुओं के अभी तक मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित नहीं हुई है, तो वे संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। इसलिए किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने के लिए गोद  में उठाने से पहले हाथो को अच्छे से साफ़ करे।

 - अपने बच्चे के सिर और गर्दन के प्रति सावधान रहें क्योंकि बच्चा अभी अपनी गर्दन को नही संभाल सकता।इसलिए बच्चे को जब भी गोद में उठाये ,बच्चे के गर्दन या सिर के नीचे हाथ से सहारा दे। अपने नवजात शिशु को जोर  से न हिलाये, चाहे खेल में या हताशा में। ज्यादा जोर से झटका या हिलाने से मस्तिष्क में रक्तस्राव सकता है और मौत भी हो सकती है।

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 - अगर आपको अपने शिशु को जागृत करने की जरूरत है तो झटकों से ऐसा नहीं करते हैं। इसके बजाय अपने बच्चे के पैर पर गुदगुदी या एक गाल पर धीरे से थपथपाया जा सकता है। आपके बच्चे को सुरक्षित रूप से वाहक, घुमक्कड़ या कार की सीट में बांधा जा सकता है।

 याद रखें कि अपने नवजात शिशु को घुटने पर झूले देना या हवा में फेंक कर  पकड़ना  आदि खेल के लिए अभी वह तैयार नही है।

 - अपने नवजात शिशु को आराम पाने में मदद करें । नवजात शिशुओं को स्वस्थ और मजबूती से बढ़त जारी रखने के लिए पर्याप्त नींद की जरूरत है। नवजात शिशु दिन में 16 घंटे के लिए आराम कर सकते हैं । लगातार बच्चा 3 -4  घंटे ही सो पाता है।



स्तनपान-
- डॉक्टरों, चिकित्सा विशेषज्ञों और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा  विशेष रूप से छह महीने के लिए अपने बच्चे को स्तनपान की सलाह दी जाती है। हालांकि यह शिशु के लिए सबसे अधिक प्राकृतिक और सबसे अच्छा पोषण है।

 - स्तनपान हमेशा आसानी से नहीं होता है। शुरुआत में कुछ परेशानियाँ हो सकती है। स्तन पर निप्पलो का छोटा होना और बच्चे का निपल्स को अच्छे  से न पकड़ पाना सामान्य समस्याएँ  है।

 - बच्चे को अच्छे से गोद में लेकर निप्प्लस को खुद उसके मुह में डालकर धीरे धीरे स्तनपान करवाना चाहिए।  जब तक शिशु चाहे तब तक पिलाये।  हर  2  घंटे  बाद स्तन पान  करवाती रहे।

 - स्तनपान शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है।

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बच्चे को कैसे लपेटे और सुलाये -
 - बच्चे को शांत जगह पर अच्छे से कंबल से ढक कर सुलाना चाहिए।  कंबल को अच्छे  से बिछा  कर बच्चे को लिटाये  ,फिर कंबल के दोनों सिरो को बच्चे के कंधो के ऊपर से ले जाते हुए लपेटे। निचे वाले सिरेको भी ऊपर की और छाती तक ढके। बच्चे का सिर बाहर ही रहेगा बच्चे के सिर को सहारा देने के लिए छोटे तकिये का प्रयोग करना चाहिए बच्चे को गोद में या उसके बिस्तर पर सुलाया जा सकता है।  पर अगर बच्चा ज्यादा तंग करे तो उसको कंधे से लगाकर धपकी  देते हुए भी सुलाया जा सकता है।  किसी भी अवस्था में बच्चे के सिर को ध्यान से सहारा जरूर दे।

 डायपर/लंगोट कैसे बदले और क्या न करें-
आप अपने बच्चे के लिए  घर पर बनाये हुए कपड़े के या डिस्पोजेबल डायपर इस्तेमाल करेंगे।शिशु को लेटा कर उसका लंगोट को आराम से बदलना चाहिए। आप जो भी उपयोग करे ,यह ध्यान रखे की बच्चे को गीलापन महसूस नही होना चाहिए।  बार बार देखते रहे की बच्चे ने पोटी तो नही की हुई क्योंकि इससे  स्किन पर रेशेस पड़ सकते है । साफ़ और ,सूती वस्त्र से ही बच्चे को पोछे क्योंकि  बच्चे की त्वचा बहुत ही मुलायम और नाजुक होती है।  डायपर से होने वाली एलर्जी से बचने के लिए नारियल का  तेल या डायपर रेशेस क्रीम का प्रयोगकर सकते है।

 स्नान सम्बन्धी आवश्यक बातें-
आपको  अपने बच्चे को एक स्पंज स्नान तब  तक देना चाहिए जब तक की गर्भनाल बंद नही  हो जाता है और पूरी तरह से नाभि को  भर नही देता है। नाभि को भरने में 1 -3 सप्ताह लग सकते है।  अपने बच्चे को स्नान से पहले इन मदों को तैयार रखना चाहिये - एक नरम, स्वच्छ खीसा हल्के और नुक्सानरहित बच्चे की साबुन और शैम्पू, एक नरम ब्रश, बच्चे की खोपड़ी को प्रोत्साहित करने के लिए तौलिए या कंबल एक साफ डायपर, साफ कपड़े।

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स्पंज स्नान-
एक स्पंज स्नान के लिए एक सुरक्षित, फ्लैट एक गर्म कमरे में (जैसे एक बदलने की मेज, फर्श, या काउंटर के रूप में) सतह का चयन करें। एक सिंक भरें या फिर गरम पानी के साथ कटोरा भरे। अपने बच्चे को कपड़े उतारो और उसे एक तौलिये  में लपेटे । एक खीसा (या एक साफ सूती गेंद) पानी से , एक आँख के साथ शुरू करने और बाहरी कोने में भीतरी कोने से पोंछते के साथ घटा के साथ अपने शिशु की आंखों को साफ कर लें। अन्य आंख धोने के लिए खीसा या एक और कपास की गेंद का एक स्वच्छ कोने का प्रयोग करें। नम खीसा के साथ अपने बच्चे की नाक और कान साफ ​​करें।फिर गीले कपड़े और एक छोटे से साबुन का प्रयोग करकर शिशु का चेहरा साफ़ करे।

 सुन्नत और गर्भनाल की देखभाल-
इसके तत्काल बाद धीरे से एक डायपर बदलने के बाद गर्भनाल  टिप गर्म पानी के साथ साफ किया जाता  है, और इसको सूखने वाली दवाई लगाई जाती है। लाली या लिंग की जलन कुछ ही दिनों के भीतर ठीक हो जानी  चाहिए, लेकिन अगर लाली या सूजन बढ़ जाती है तो मवाद से भरे फफोले फार्म, संक्रमण मौजूद हो सकता है और आपको  अपने बच्चे के डॉक्टर को  तुरंत बुलाना चाहिए।

नवजात शिशुओं में गर्भनाल देखभाल भी जरूरी है। यह 3 सप्ताह के लिए 10 दिनों में सूख जाता है और बंद हो जाता है,इस स्थान पर ज्यादा हाथ नही लगाना चाहिए।
शिशु की नाभि क्षेत्र पानी में डूबे हुए नहीं होनी चाहिए जब तक की रस्सी स्टंप बंद हो न हो जाये। गर्भनाल स्टंप भूरे या काले रंग के लिए पीले रंग से रंग बदल जाएगा - यह सामान्य है। अपने चिकित्सक से परामर्श ले यदि नाभि क्षेत्र बेईमानी गंध या मुक्ति विकसित हो जाता है।


गैस बनना-
दूध पीने  से कई बार बच्चे को गैस बन जाती है तो ऐसी अवस्था में बच्चे का पेट दर्द करने लगता है,  जोर जोर से रोने लगता है।  इसके लिए आवश्यक है की बच्चे को उल्टा लेटा कर कमर पर हाथ से हलकी मालिश करे।  गैस तुरंत बहार निकल जाएगी और बच्चा रोना बंद कर देगा।

कब्ज या पेट दर्द-
कई बार बच्चे को कब्जी हो जाती है और अन्य कारणों से भी पेट दर्द करने लगता है , पीसी हुई हींग को गरम पानी में घोल कर नाभि पर लेप लगाये।  शिशु का पेट तुरंत हल्का हो जायेगा और दर्द में तुरंत आराम मिलेगा।  कब्ज से निपटने क लिए छोटी हरड़ को पानी में घिस कर हर रोज एक चम्मच दिया जा सकता है।

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